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मंदिरों की अर्थवव्स्था को पुन: जीवित करते दो नए देवता शनि और साईं

LOUD AND CLEAR
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हिन्दू मंदिरों में आने वाला पैसा कभी कम न हो इसलिए हर एक सदी के बाद कोई न कोई नया देवता जन्म ले ही लेता है

मेरे पडोस में एक मंदिर है जिसको २५ साल से मैंने कई रूप बदलते देखा है ,उसका इतिहास मैंने अपने पास पडोस में रहने वाले बुजुर्गो से भी सुना है
आरम्भ में वह शिव मंदिर था ,उसके बाद वो राम और हनुमान मंदिर हो गया ,कुछ दिनों के बाद वो संतोषी मंदिर हो गया ,अब वो साईं और शनि मंदिर हो गया ,मैंने पुजारी बाबू से पूछा तो बताया की अब मंगल को भीढ़ कम और शनिवार को ज्यादा आती है अभी उसमे राहू और केतु देवता का निर्माण चल रहा है

भारत वेर्ष में आप किसी मूर्ति या इंसान के आगे आप भगवान् लगा दो बस आदमी खुद ही झुक जाता है ,बिना कोई सोचके ,बिना कोई बुधि लगाये

जब वेदों की रचना सामने आई इश्वर का स्वरुप और उसके शक्ति के बारे में बताया गया इश्वर का जो स्वरुप निराकार और निर्गुण बताया गया .. शिव को ही इस व्यवस्था का प्रथम गुरु माना गया है।
अब निराकार इश्वर की उपासना भी कठिन थी जिसमे जप तप और ध्यान शामिल था ,कुछ लोगो ने तो इसे अपनाया तो कुछ को इस तरह उपासना करना भी कठिन पड़ा
बाद में संतो में भगवान् को मनुष्य रूप में स्थापित किया ,कारण साफ़ था मनुष्य को मनुष्य से प्यार हो सकता है बस इसीलिए निराकार स्वरुप को मूर्ति रूप में को स्थापित किया गया ,जिससे आदमी अपने दिल की बात किसी के सामने कह सके

ये एक आरम्भ था भगवान् को मूर्ति रूप देने का
सबसे पुरानी ज्ञात मूर्तियों में भगवान् के कई रूप मिलते है जैसे नन्दीश्वर ,काल भैरव आदि
उस समय तक पशुधन ही सबसे बड़ा धन था इसलिए ये सब मुर्तिया उनके जीवन को प्रभावित करती थी
बाद में चतुर लोगो ने भगवान् को कई रूप में स्थापित किया उसमे सबसे लोक प्रिय था ब्रह्मा, विष्णु, महेश लोगो को ये बताया जाता है कि ब्रह्मा जनम देने वाले ,विष्णु पालन और महेश विनाश के लिए जिम्मेदार बस फिर क्या था लोगो ने तीनो रूपों को जम कर पूजना आरम्भ किया ,इन्हें मंदिरों में स्थापित किया गया है
तरह तरह के किस्से कहानिया और पूजने के तमाम विधि निकल पड़ी ,इस तरह से मंदिरों का धंधा चल निकला

इसवी सन 500 तक आते आते इसमें इतनी बुराईया आ गयी थी कि आम आदमी का इसमें चलना मुस्किल हो गया था
हिन्दू धर्म वेदों को छोड़ पंडितो और ब्राह्मणों के हाथो की रखैल बन कर रह गया था ,तमाम फालतू के कर्म काण्ड और उन कर्म कांडो के नाम पर केवल लूट पाट होती थी ,आदमी को चार भागो में बाट दिया गया जिसे वैदिक विभाजन का नाम दिया गया ,१-ब्राह्मण २- छत्रिय ३- वैश्य ४-शूद्र

सन 700 के अस पास पहला पुराण स्कन्द पुराण लिखा गया ,ये सातवाहन वंश में लिखा गया ,इसके बाद तो जैसे देवी देवताओ और पुराणों की बाढ़ सी आ गयी ,रोज नए देवता
लोग ब्रह्मा, विष्णु, महेश से निराश थे उनको इन देवताओ में नई आशा दिखती थी इमसे गणेश ,वामन. तमाम देविया प्रमुख है
वास्तव में पुराणों में गप कथाओ के सिवा कुछ भी नही है
इन्ही तमाम देवताओ के कारण मंदिरों की अर्थवव्स्था फिर चल निकली

लोग इन सब से उबने लगे थे अजीब अजीब से देवता और उनका भय सन 1100 के आस पास आई भगवत कथा इसे से जन्म हुआ श्री कृष्ण का ,
संत श्री कृष्ण ने गीता लिख कर लोगो में वेदों को फिर से पुन: जीवित करने के कोशिश की ,पर ज्यादातर लोग उसको समझने के बजाये उसके पात्र श्री कृष्ण की आरती उतारने में लग गए ,सूरदास ने उन्हें राधा से प्यार कराया तो भगवत कथा ने उन्हें आवारा प्रेमी बना दिया ,इनसब में गीता कही खो गयी
1200 और 1500 के आस पास रामायण और राम चरित मानस लिखे गए और श्री राम जी के अवतार का हुआ
ये वास्तविक है इसमें संदेह रहा है

अब मंदिरों में इन दोनों अवतारों की मुर्तिया स्थापित की गयी हिन्दू जनता में एक नया उम्मीद जगी और इन दोनों अवतारों की का जम कर प्रचार किया गया ,मंदिरों में फिर नयी जान आ गयी , मंदिरों की अर्थवव्स्था फिर चल निकली
सन 1975 में आई फिल्म “संतोषी माता” ने एक नयी देवी को जनम दिया हर मदिर में संतोषी के मूर्ति की स्थापना की जाने लगी
उनके उपवास की विधि और उसके लाभ बताये जाने लगे ,कई नयी पुस्तके पुराण लिख कर उनके आदि काल से होने के प्रमाण दिए जाने लगे
हर शुकवार को मंदिरों में बजती डोलके इसका प्रमाण है
शिर्डी के साईं बाबा का जनम १८३८ के आस पास माना जाता है साईं बाबा गरीब और बीमार लोगो की सेवा करते थे साई बाबा ने हमेशा ही सभी जनमानस से यही बार-बार कहा है कि सभी के साथ ही समानता का व्यवहार करना चाहिए। गरीबों और लाचारों की यथासम्भव मदद करना चाहिए और यही सबसे बडी पूजा है। क्योकि जो गरीबों, लाचारों की मदद करता है ईश्वर उसकी मदद करता है।

पर अपनी देहावसान के बाद साईं को लोगो ने एक भगवान् की तरह पूजना सुरु किया साईं जी की आत्मा आज सबसे ज्यादा दुखी होगी लोग उनके बताये हुए रास्ते पर न चल कर उनकी आरती उतरने में लगे है

उन पर चालीसा और झूठी किताबे लिखी जा रही है
आज के समय में कई लोग खुद को उनका अवतार बता रहे है उनको आज हर छोटे बड़े मंदिरों में स्थापित किया जा रहा है
अभी लगभग ३ या चार सालो में कोई देवता आगे आया है वो है शनि देवता ये भी हर मंदिर हर चौराहे पर स्थापित किया जा रहा है
मंदिर के पुजारी ने बताया अब लोग मंगलवार को कम और शनिवार को ज्यादा आते है

मेरे एक मित्र हर शनिवार मंदिर जाते है मैंने पूछा क्यों ,उसने बताया की शनि मेरे हाथो में विराजमान है मैंने कहा भाई मेरे शनि आपके हाथो में नही ब्रमांड में विराजमान है उसकी किसी गति का असर केवल आप पर नही पूरी प्रकति पर होगा क्या वो आप की प्राथना सुन सकता है

आगे आगे देखना है कितने और कैसे कैसे देवता आते है
अभी तो मंदिर साईं और शनि के भजनों और उनके चढाओ से मस्त है

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