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माता नही कु -माता

LOUD AND CLEAR
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राम सागर के मरने के बाद उसके लड़के मनोज के जैसे पंख लग गए जैसे कोई सांड बिना नकेल के आवारा हो जाता है राम सागर की मौत अल्पकालीन थी कोई पचास की उम्र रही होगी दिन भर की मजदूरी और रात की कच्ची दारू उसे मौत के और भी करीब ले आई थी

मुझे अच्छी तरह याद है जब राम सागर बिस्तर पर अपने आखरी दिन गिन रहे थे तब वो अपने बेटे को दुनिया भर की अच्छी बाते सिखा रहे थे “बेटा किसी से लड़ना नही ,गाव में बड़ो का आदर करना ,अपनी माँ का ध्यान रखना और कभी दारू मत पीना कोई नसा मत करना” आदि आदि मनोज बीच बीच में रोते रोते हाँ हाँ कर देता

कहते है की जब तक आप कोई काम खुद न करो और वो काम दुसरे को करने की सलाह देने पर सामने वाले पर कोई असर नही होता ,राम सागर ने इनमे से कभी किसी बात का पालन नही किया शायद इसीलिए सारे उपदेश मनोज के आंसुओ के साथ धुल गए

मनोज अपने बाप से २ कदम आगे थे दिन भर नसे में धुत रहता ,मजदूरी भी करना बंद दिया ,राम सागर में मेहनत ,मजदूरी से पांच बिसुवा जमीन और छोटा सा बाग तैयार किया था ,उसको मनोज ने अपने नसे और कामोइछा को पूरा करने के लिए बेचना शुरू कियासबसे पहले उसने बाग़ बेचा ,जिसकी कीमत लगभग बीस हज़ार लगी इतनी रकम कुछ महीनो तक मौज उड़ाने के लिए बहुत थी मनोज सुबह सुबह उठ कर ही दारू पी लेता,दिन भर नसे धुत में रहता ,लोगो को गाली देता ,आवारा बन कर घूमता

मनोज की माँ “राम दुलारी ” से देखा नही जाता ,वो दिन भर उस पर चिल्लाती ,टोकती उसे थोड़ी बहुत सम्पति घर और अपना बेटा खोने का डर था वह गॉव के बड़े बूडो से उसकी शिकायत करती,मनोज चुप चाप लोगो की बाते सुन तो लेता पर उस पर कोई असर नही था अब इधर माँ बेटे के बीच जायदा ही झगडे शुरू हो गए माँ अपनी पूरी सख्ती पर थी

मनोज को लगने लगा की उसकी माँ सबसे बड़ी दुश्मन है एक दिन हद हो गयी ,मनोज अपने सुबह का दारू नास्ता कर चुका था दोपहर को उसने फिर एक और बोतल निकली ,माँ से ये बर्दास्त नही हुआ वो बोतल छिनने को लपकी “बस बहुत हो चुका अब और दारू पिने नही दुगी “माँ बेटे के बीच छीना झपटी चल रही थी ,तभी अचानक बोतल छिटक कर दूर एक पत्थर पर जाकर गिरी और टूट कर बिखर गयी

मनोज नसे में पूरा सांड हो चुका था उसकी विवेक बुधि मानवता सबने काम करना बंद कर दिया था ,उसमे पास पड़े एक बांस के डंडे से अपने माँ के सर पर दे मारा माँ उस जोरदार प्रहार से बेहोश हो गयी ,

मनोज ने आज अपनी माँ को ठिकाने लगाने का पूरा विचार कर लिया था बेहोश पड़ी माँ को उसने एक कपडे में लपेटा और एक सामान की तरह अपने कंधे पर डाल लिया चुपके चुपके वो नदी के किनारे पर पंहुचा और नदी में फेक दिया वो ये सोच कर बहुत खुश था कि अपनी मुसीबत को नदी में बहा चुका है अब कोई रोक टोक नही करेगा पर पास खड़े कुछ चारवाहो ने जब ये देखा कि इतनी
बड़ी चीज इसने क्या फेकी ,वो दोड़े और नदी में छलाग लगा दी ,उन्होंने ने माँ को बाहर निकला और मनोज को पकड़ कर जम कर पीटा,बाद में उसे पोलिस के हवाले कर दिया

एसे लोगो को कोई भी पसंद नही करता ,बस पीटने का मन करता है ,फिर पोलिस वाले कहाँ मानाने वाले थे जब दरोगा ने पूरी बात सुनी और उस बेहोश माँ को देखा तो उसका गुस्सा सातवे आसमान पर पहुच गया उसने अपना डंडा उठाया और पीटना शुरू किया

दरोगा ने अभी दो ही लाठिया भाजी थी कि बेहोश माँ को होश आ गया बेटा को पिटता देख माँ ने उसे निचे ठक लिया जैसे कोई ठाल मज़बूत प्रहारों से बचा लेती है दरोगा के सामने गिडगिडाते हुए बोली “ना मारो साहब ,गुस्से में गलती हो गयी ,जैसा भी है हमार लडिका है ”

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